हाइलाइट्स
प्रधानमंत्री बनने के बाद व्लादीमीर पुतिन के साथ उनकी 16 मुलाकातें हो चुकी हैं.साल 2021 के बाद दोनों नेता आमने-सामने नहीं हुए हैं, इस बीच यूक्रेन युद्ध हुआ है.दोनों देशों का व्यापार पिछले साल रिकॉर्ड 65.70 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल में पहली बार भारतीय परंपरा को तोड़ते हुए पहला दौरा किसी पड़ोसी देश का करने के बजाए भारत के 70 साल पुराने दोस्त के घर जा पहुंचे. पीएम मोदी का रूस का दौरा कई मायनों में खास होगा. रूस हमेशा से सामरिक दृष्टि से भारत का करीबी रहा है और यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री रूस के दौरे पर हैं. कारोबार के लिहाज से यह दौरा काफी अहम माना जा रहा है. रणनीतिकारों का मानना है कि इस दौरे से तेल और समंदर के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं.
वैसे तो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद व्लादीमीर पुतिन के साथ उनकी 16 मुलाकातें हो चुकी हैं, लेकिन 2021 के बाद दोनों नेता आमने-सामने नहीं हुए हैं. बीते 3 साल में वर्ल्ड पॉलिटिक्स में काफी बदलाव आ चुका है. यूक्रेन के साथ लंबे युद्ध और अमेरिकी प्रतिबंधों को झेलते हुए रूस को नए दोस्तों के साथ पुराने सहयोगियों की भी जरूरत है. यही कारण रहा है कि करीब 4 दशक बाद रूस का कोई नेता उत्तर कोरिया के दौरे पर पहुंचा. अब पीएम मोदी के साथ पुतिन की द्विपक्षीय वार्ता दोनों ही देशों के लिए बहुत खास होने वाली है. आपको बता दें कि भारतीय राजनीति की परंपरा है कि पीएम की कुर्सी संभालने के बाद पहला विदेशी दौरा पड़ोसी देश का होता है. मोदी ने भी पीएम बनने के बाद 2014 में भूटान का तो 2019 में मालदीव-श्रीलंका दौरा किया था. इस बार यह परंपरा भी टूट गई.
क्या है कारोबारी स्थिति
रूस और भारत की मौजूदा कारोबारी स्थिति को देखें तो यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद भारत मजबूती के साथ रूस से जुड़ा हुआ है. 2023-24 में दोनों देशों का व्यापार रिकॉर्ड 65.70 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जबकि 2025 तक इसे महज 30 अरब डॉलर तक ले जाने का प्लान था. व्यापार में यह उछाल भारत के बड़ी तेल खरीद की वजह से आया है. रूस हमारा सबसे बड़ा एनर्जी सप्लायर है.
हम क्या खरीदते और क्या बेचते हैं
दोनों देशों के व्यापार को देखें तो भारत रूस को दवाएं, कार्बनिक रसायन, इलेक्ट्रिक मशनरी, मैकेनिकल अप्लायंस, आयरन और स्टील भेजता है. आयात के मोर्चे पर भारत तेल और पेट्रोलियम प्रोडक्ट, फर्टिलाइजर्स, मिनरल रिसोर्सेज, कीमती पत्थर और मेटल, खाद्य तेल रूस से मंगाता है. इसके अलावा भारत सबसे ज्यादा डिफेंस प्रोडक्ट रूस से ही खरीदता है. एक अनुमान के मुताबिक, भारत का 70 फीसदी हथियार रूस का या रूस के सहयोग से बना हुआ है.
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इस बार किस पर बातचीत
अधिकारियों का मानना है कि इस बार की बातचीत भारत और रूस दोनों के लिए ही बराबरी का सौदा है. रूस पर यूरोप और अमेरिका के प्रतिबंधों की वजह से बैंकिंग चुनौतियां बढ़ गई हैं, जिसका हल वह भारत के जरिये करना चाहता है. दूसरी ओर, भारत को बढ़ती एनर्जी जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस से तेल और एनएनजी का लांग टर्म कॉन्ट्रैक्ट करने की जरूरत है. इसके अलावा इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनाने, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मेरिटाइम रूट और नॉर्थ सी कॉरिडोर बनाने पर भी बातचीत हो सकती है.
भारत के लिए क्या जरूरी
बातचीत के दौरान पीएम मोदी रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की जल्द आपूर्ति की बात कर सकते हैं. भारत ने वैसे तो रूसे बाहर अमेरिका, इजरायल और फ्रांस से भी कई रक्षा डील की है, लेकिन चीन के साथ बढ़ते तनाव को देखते हुए रूस का सहयोग जरूरी हो गया है. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने पहले भी ऐलान कर चुके हैं कि रूस जो भी रक्षा तकनीक भारत को देगा, उसे दुनिया के किसी और देश के साथ कभी साझा नहीं करेगा. ऐसे में भारत के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह एक बार फिर रूस के साथ नई डिफेंस डील पर आगे बढ़े.
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भारत के लिए क्या चुनौतियां
यह अलग बात है कि रूस हमारा सबसे बड़ा सहयोगी है, लेकिन फैक्ट ये है कि दोनों देशों के व्यापार में रूस हमसे कहीं आगे है. हम रूस से निर्यात की तुलना बड़ी मात्रा में आयात करते हैं. इसके अलावा रूस पर लगे प्रतिबंधों का असर भी दोनों देशों के व्यापार पर दिख सकता है. ऐसे में भारत और रूस दोनों ही अपने व्यापार को ज्यादा डाइवर्सिफाई करने के मूड में हैं. भारत का जोर फार्मा, आईटी और एग्रीकल्चर प्रोडक्ट का निर्यात बढ़ाने पर है. अभी तो कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन जल्द ही भारत रूस के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर भी आगे बढ़ सकता है.
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FIRST PUBLISHED : July 8, 2024, 12:50 IST