संविधान पीठ के फैसले की समीक्षा! जब CJI चंद्रचूड़ याच‍िका देखकर रह गए हैरान, फिर सिंघवी बोले- माईलॉर्ड…

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Abhishek Manu Singhvi: सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसी याचिका आई, जिसे देखकर सीजेआई आश्चर्यचकित रह गए. इस सुनवाई के दौरान …अधिक पढ़ें

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक ऐसी याचिका आई, जिसे देखकर खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ हैरान रह गए. यह याचिका थी झारखंड राज्य की ओर से. इसी दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच को केंद्र और टाटा समूह की एक इकाई द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिकाओं के बारे में बताया. इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ हैरान रह गए और कहा कि संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार? दरअसल सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच के फैसले से केंद्र सरकार पर भारी वित्तीय बोझ आ गया है. इस फैसले में राज्यों को खनन किए गए खनिजों पर रॉयल्टी और खनिज वाली जमीन पर टैक्स लगाने का अधिकार दिया गया है. केंद्र ने इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है और फैसले में स्पष्ट गलतियों की ओर इशारा किया है.

दिलचस्प बात यह है कि केंद्र सरकार ने 25 जुलाई के फैसले पर खुली अदालत में सुनवाई की मांग करते हुए मध्य प्रदेश को एक सह-याचिकाकर्ता के रूप में शामिल किया है. केंद्र ने तर्क दिया है कि उसके द्वारा उठाया गया मुद्दा देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित है और जनहित का एक बड़ा मुद्दा उठाता है और अगर समीक्षा याचिका पर मौखिक सुनवाई के लिए आवेदन की अनुमति नहीं दी जाती है तो गंभीर अन्याय होगा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह केंद्र और खनन कंपनियों से हजारों करोड़ रुपये मूल्य के खनिज अधिकार और खनिज युक्त भूमि से मिलने वाले राजस्व और बकाया टैक्स की वसूली के संदर्भ में झारखंड जैसे खनिज संपन्न राज्यों की कई याचिकाओं को सुनने के लिए एक पीठ का गठन करेगा.

चीफ जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने का वैधानिक अधिकार संसद में नहीं बल्कि राज्यों में निहित है. सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को अपने एक फैसले में स्पष्ट किया था कि इस फैसले का संभावित प्रभाव नहीं होगा और राज्यों को एक अप्रैल, 2005 से 12 वर्षों की अवधि के दौरान केंद्र एवं खनन कंपनियों से खनन अधिकार और खनिज युक्त भूमि से मिलने वाले हजारों करोड़ रुपये के राजस्व एवं बकाया टैक्स की वसूली की अनुमति दी.

झारखंड की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, स्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच से बकाया राशि की वसूली और उनके समक्ष आने वाले कानूनी बाधाओं को दूर करने के लिए इन याचिकाओं को एक पीठ को सौंपने का अनुरोध किया. राकेश द्विवेदी ने अनुरोध करते हुए कहा, ‘यह नौ सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले के बाद उठाए गए कदमों के संदर्भ में है. सभी मामलों को अब एक साथ किया जाए.’वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ को केंद्र और टाटा समूह की इकाई द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर करने के बारे में बताया.

इसके बाद कुछ निजी खनन कंपनियों की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट अभिषेक सिंघवी ने कहा कि माईलॉर्ड, अब राज्य धन की वसूली चाहते हैं. इस पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मैं याचिकाओं को सुनवाई के लिए विशेष रूप से (संविधान) पीठ में शामिल जजों में से किसी एक को सौंपना चाहूंगा.’ सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई के फैसले में कहा था कि राज्यों को टैक्स और राजस्व लगाने का अधिकार है. इस फैसले के बाद राकेश द्विवेदी ने खनिजों और खनिजयुक्त भूमि पर टैक्स लगाने को लेकर झारखंड के समक्ष आने वाली कानूनी बाधाओं का जिक्र किया था.

उन्होंने कहा था कि एक मुद्दा अब भी बना हुआ है कि खनिजों एवं खनिजयुक्त भूमि पर राजस्व एकत्रित करने के लिए झारखंड का कानून, जिसे इससे पहले रद्द कर दिया गया था और अब इसे बरकरार रखे जाने की आवश्यकता है. राकेश द्विवेदी के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता तपेश कुमार सिंह भी झारखंड की ओर से पेश हुए थे. उन्होंने कहा, ‘जब तक कानून को वैध घोषित नहीं किया जाता है, हमलोग खनिजों और खनिजयुक्त भूमि पर कर संग्रह नहीं कर सकते. कृपया इसे उचित पीठ के समक्ष जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें.’ उन्होंने पटना हाईकोर्ट की रांची पीठ के एक फैसले का हवाला दिया था, जिसमें 22 मार्च 1993 के अपने फैसले में खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम 1992 की धारा 89 को रद्द कर दिया गया था. (इनपुट भाषा से भी)

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