कैसा रहा कश्मीर में पहला चुनाव, एक ही पार्टी ने जीत ली थीं सारी सीटें, बनाया कभी न टूटने वाला रिकॉर्ड 

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Jammu-Kashmir Electoral History: भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर में पहले चुनाव 1951 में हुए. इस चुनाव में शेख अब्दुल …अधिक पढ़ें

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हाइलाइट्स

भारत में शामिल होने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहले चुनाव 1951 में हुए थेउस समय इस राज्य में विधान सभा को संविधान सभा कहा जाता था.नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सभी 75 सीटें जीतीं और शेख अब्दुल्ला प्रधानमंत्री बने

Jammu-Kashmir Electoral History: जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहा है. साल 2018 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस ले लिया था और महबूबा मुफ्ती की सरकार गिर गई थी. तब से अब तक वहां पर कोई भी चुनी हुई सरकार नहीं है. जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्‍टूबर को तीन चरणों में चुनाव होगा. नई सरकार का गठन होने से पहले आइए समझते हैं इस राज्य का चुनावी इतिहास…

26 अक्टूबर, 1947 को भारत में शामिल होने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहले चुनाव 1951 में हुए थे. उस समय इस राज्य में विधान सभा को संविधान सभा कहा जाता था. इस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सभी 75 सीटें जीतीं और शेख अब्दुल्ला ने 31 अक्टूबर 1951 को राज्य की बागडोर संभाली. सूबे के पहले चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सभी 75 सीटें जीतकर कभी न टूटने वाला रिकॉर्ड बना दिया था. यहां तक कि 73 सीटों पर तो नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार बिना किसी विरोध के ही चुन लिए गए थे. इस चुनावों के दौरान धांधली होने के आरोप लगे और खासा विवाद पैदा हो गया था.

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प्रजा परिषद ने किया बहिष्कार
1951 के पहले चुनाव में 75 सीटों पर विधायक चुने जाने थे. उस समय जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री नहीं बल्कि प्रधानमंत्री चुने जाते थे. बंपर जीत दर्ज कर शेख अब्दुल्ला राज्य के पहले चुने हुए प्रधानमंत्री बने थे. इन चुनावों को राज्य के इलेक्शन एंड फ्रेंचाइजी कमिश्नर ने सम्पन्न कराया था. ये चुनाव शुरू से ही विवादों में घिर गए थे. चुनाव में हुई अनियमितताओं की तब काफी आलोचना हुई थी.  नेशनल कॉन्फ्रेंस के बाद दूसरे प्रमुख राजनीतिक दल  प्रजा परिषद ने अनैतिक गतिविधियों और प्रशासनिक हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए चुनावों का बहिष्कार किया था. 

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13 उम्मीदवारों का नामांकन खारिज
कश्मीर डिविजन की सभी 43 सीटों पर शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रत्याशी चुनाव से एक हफ्ते पहले ही निर्विरोध जीत गए थे. वहीं, जम्मू में प्रजा परिषद के 13 उम्मीदवारों का नामांकन खारिज हो गया था. जिसके बाद प्रजा परिषद ने चुनावों का बहिष्कार कर दिया. लद्दाख में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के नामांकित सदस्यों के रूप में प्रमुख लामा और उनके एक साथी ने जीत दर्ज की थी. इस तरह सभी 75 सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस के खाते में चली गईं.

शेख अब्दुल्ला को भेजा जेल
प्रजा परिषद जब चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पायी तो सदन में नेशनल कॉन्फ्रेंस के सामने कोई विपक्ष मौजूद नहीं था. ऐसे में प्रजा परिषद ने विरोध प्रदर्शन का सहारा लिया और वो सड़कों पर शेख अब्दुल्ला सरकार की मुखालफत करने लगी. प्रजा परिषद ने शेख अब्दुल्ला पर डोगरा विरोधी होने का आरोप लगाया. प्रजा परिषद ने ‘लोगों के वैध लोकतांत्रिक अधिकारों’ को सुनिश्चित करने के लिए भारत के साथ राज्य के पूर्ण एकीकरण की मांग की. शेख अब्दुल्ला सरकार और प्रजा परिषद के बीच विवाद इतना बढ़ा कि केंद्र की नेहरू सरकार ने 1953 में शेख अब्दुल्ला को पद से हटाकर जेल भेज दिया गया. वह करीब दस साल तक जेल में रहे.

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किसी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया
केंद्र सरकार ने शेख अब्दुल्ला की जगह बख्शी गुलाम मोहम्मद को राज्य का अगला प्रधानमंत्री बना दिया. गुलाम मोहम्मद ने नौ अगस्त, 1953 को पद संभाला. उन्होंने शेख अब्दुल्ला विरोधी नेताओं की मदद से सरकार चलाई. शेख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थक नेताओं ने जनमत संग्रह समर्थक मोर्चा बनाया और किसी भी विधानसभा या संसदीय चुनाव में भाग नहींं लिया. जब स्थिति तब तक बनी रही जब तक 1975 में इंदिरा-शेख अब्दुल्ला के बीच सहमति नहीं हो गई. 1951 के बाद उन्होंने अगला चुनाव 1977 में लड़ा और शानदार जीत दर्ज की.

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