झूठ नहीं बोल रहे हैं CM नीतीश, नहीं छोड़ेंगे NDA का साथ, समझिए असलियत

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Bihar Politics: नीतीश कुमार के पाला बदल का संदेह शाश्वत है. दो बार भाजपा से अलग होकर लालू यादव की पार्टी आरजेडी के साथ …अधिक पढ़ें

नई दिल्ली: नीतीश कुमार एनडीए के साथ हैं. पूरे मन से, लोकसभा चुनाव के दौरान नीतीश यह बात खुद कई बार कहते रहे कि दो बार इधर-उधर हो गए थे. गलती हुई. अब कहीं नहीं जाएंगे. भाजपा के साथ एनडीए में ही रहेंगे. हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने भी उन्होंने यह बात दोहराई. इसके बावजूद उनके अतीत को देखते हुए यह चर्चा बार-बार उठ रही है कि वे मौके के इंतजार में हैं. भाजपा से उनका जी भर गया है. वे फिर पाला बदलने की तैयारी में हैं.

नीतीश को संदिग्ध बनाने के लिए कभी पुराने वीडियो वायरल किए जाते हैं तो कभी संवैधानिक प्रक्रिया के तहत नेता प्रतिपक्ष के रूप में तेजस्वी यादव की नीतीश से मुलाकात होते ही अटकलों का बाजार गर्म हो जाता है. ऐसी अटकलों से आरजेडी को आनंद आता होगा. यही वजह है कि ऐसे अटकलों पर आरजेडी खामोश है. पर, क्या सच में नीतीश कुमार पुरानी गलती दोहराएंगे, इस परह विचार करते हैं.

अटकलों के लिए लोग कड़ियां जोड़ रहे हैं, राजनीतिक विश्लेषक कई कड़ियों को जोड़ कर अटकलों को पुख्ता बनाने का प्रयास भी करते हैं. वे एक-एक कड़ी को गिनाते हैं. इस क्रम में वे कहते हैं कि नीतीश कुमार केंद्र सरकार के कई फैसलों से असहज हैं. वक्फ संशोधन बिल के वे खिलाफ हैं. हालांकि उनके इस आकलन का आधार ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी का बयान भर है. रहमानी ने दिल्ली में प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा था कि मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने यकीन दिलाया है कि वे वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध करेंगे. हालांकि नीतीश कुमार ने अपनी ओर से कभी इस तरह का बयान नहीं दिया है. सच तो यह है कि जेडीयू कोटे से केंद्र में मंत्री बने राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने वक्फ संशोधन बिल की सदन में तारीफ की थी.

कास्ट सेंसस भी बताई जा रही है वजह
नीतीश की नरेंद्र मोदी सरकार से नाराजगी की दूसरी कड़ी विश्लेषक जाति जनगणना और आरक्षण के उदाहरण के साथ जोड़ते हैं. नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में केंद्र ने जाति जनगणना न कराने की बात कही थी. इसमें केंद्र ने तकनीकी कारण बताया था. हालांकि केंद्र सरकार ने राज्यों को यह छूट दे दी थी कि वे अपने यहां चाहें तो यह काम करा सकते हैं. इस पर आने वाला खर्च राज्य सरकारों को ही वहन करना होगा.

नीतीश कुमार ने यह बीड़ा उठाया और जाति सर्वेक्षण करा लिया. आज राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव जाति जनगणना के लिए अजब अंदाज में केंद्र पर दबाव डाल रहे हैं. राहुल गांधी कहते हैं कि इसी सदन (लोकसभा) में वे जाति जनगणना की बात सरकार से मनवा कर रहेंगे. लालू यादव कहते हैं कि कान पकड़ कर जाति जनगणना कराने को मजबूर करेंगे. हालांकि विपक्षी नेता यह काम अपने शासन वाले राज्यों में नहीं करा पाए. इसे नीतीश की केंद्र सरकार से नाराजगी की वजह बताई जा रही है.

रिजर्वेशन पर भी बता रहे हैं नाराजगी
नीतीश कुमार ने न सिर्फ जाति सर्वेक्षण कराया, बल्कि उसके आंकड़ों के अनुरूप आरक्षण सीमा भी 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 65 प्रतिशत कर दी थी. तब वे आरजेडी के सथ सरकार चला रहे थे. नीतीश सरकार ने कानूनी पचड़े से बचने के लिए इसे संविधान की नौंवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र को अनुरोध पत्र भेजा. विश्लेषकों का तर्क है कि नौवीं अनुसूची में शमिल न करने की वजह से ही यह न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ गया. पटना हाईकोर्ट ने इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी. राज्य सरकार इसे लेकर सुप्रीम पहुंची है. आरजेडी ने भी इसे लेकर अलग से एक मामला सुप्रीम कोर्ट में दायर किया है. नीतीश कुमार की मोदी सरकार से नाराजगी के रूप में इसे भी विश्लेषक देख रहे हैं और अनुमान लगा रहे हैं कि नीतीश नाराज हैं. ऐसे और भी कई मुद्दे हैं, जिन पर नीतीश ने कभी कुछ नहीं कहा, लेकिन उनके निवर्तमान प्रवक्ता केसी त्यागी ने विरोध के स्वर मुखर किए थे.

नीतीश एनडीए नहीं छोड़ेंगे, जानिए क्यों
अब सवाल उठता है कि नीतीश कुमार की नाराजगी बता कर जो लोग उनके पाला बदल की आशंका जता रहे हैं, क्या वह सच है. यह आशंका सच के करीब इसलिए नहीं दिखती कि नीतीश कुमार ने पिछले ही तीन दिन पहले ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और बीजेपी के रष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में साफ कहा कि पहले की गलती वे नहीं दोहराएंगे. वे जहां हैं, अब वहीं रहेंगे. इससे इतर अगर दूसरे कुछ पहलुओं पर गौर करें तो बात समझ में आ जाएगी कि नीतीश कुमार जो बोल रहे हैं, वही सच है. भले ही वे पहले इस तरह की बात कहने के बावजूद पलटते रहे हैं, लेकिन इस बार वे सच बोल रहे हैं, इसका तार्किक आधार है.

जेडीयू के जाने से सरकार पर असर नहीं
पहला आधार यह कि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के लोकसभा में 12 सदस्य हैं. भाजपा के सांसदों की संख्या 240 है. बहुमत के लिए 272 का आंकड़ा जरूरी है. नीतीश कुमार अगर पाला बदलते भी हैं तो नरेंद्र मोदी सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. इसलिए कि तब भी मोदी सरकार को 278 सांसदों का समर्थन रहेगा. नीतीश के पाला बदल से विपक्ष की केंद्र में सरकार भी नहीं बन पाएगी. विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में कुल अदद 232 सांसद हैं. यानी सरकार बनाने के लिए नीतीश की पार्टी जेडीयू के 12 सांसदों का समर्थन पर्याप्त नहीं होगा. ऐसी स्तिथि में भाजपा से रिश्ते बिगाड़ कर नीतीश कुमार क्यों इंडिया ब्लाक का हिस्सा बनेंगे? अभी उनके एनडीए में रहने पर बिहार के लिए केंद्र ने जिस तरह बड़ी रकम का बजटीय प्रावधान किया है, हमेशा बिहार के विकास के लिए चिंतित रहने वाले नीतीश उसे गंवाना नहीं चाहेंगे.

भाजपा से लाभ नीतीश कैसे भूल पाएंगे
दूसरा आधार यह है कि नीतीश कुमार की पार्टी को लोकसभा चुनाव में अगर भाजपा के बराबर 12 सीटें आईं तो इसमें भाजपा के वोटरों का भी योगदान रहा. यह बात नीतीश भी जानते हैं. उन्हें यह भी पता है कि इंडिया ब्लाक में वे रहते तो उनकी स्थिति क्या होती. बिहार में अपनी मजबूत जमीन का दावा करने वाले आरजेडी को 23 सीटों पर लड़ कर सिर्फ 5 सीटें ही मिलीं, जबकि भाजपा के साथ रहते 16 पर ही लड़ कर जेडीयू को 12 सीटें मिल गईं. इतना ही नहीं, 243 विधानसभा सीटों वाले बिहार में एनडीए को 160 से अधिक सीटों पर बढ़त मिली. अगले साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है. नीतीश निश्चित को छोड़ अनिश्चित की ओर कदम क्यों बढ़ाएंगे.

इंडिया ब्लाक की उपेक्षा भूलना मुश्किल
तीसरा आधार यह है कि 2022 में नीतीश ने एनडीए छोड़ महागठबंधन के साथ सरकार बना ली थी. इसके बाद उन्होंने विपक्षी एकता का दुरूह काम किया. एक दूसरे को नापसंद करने वालों को एक मंच पर जुटाया. आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी के बीच तनातनी तब जगजाहिर थी. ममता की कांग्रेस से नाराजगी ऐसी थी कि उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तीसरी बार कामयाबी मिलने के बाद गैर कांग्रेस विपक्ष की अवधारणा पर ही काम शुरू कर दिया था. इन सबको एक मंच पर जुटाने के बावजूद नीतीश कुमार के साथ जो सलूक हुआ, वह भी सबतो पता है. पीएम पद की दावेदारी से नीतीश के इनकार के बावजूद उन्हें संयोजक पद के लिए तरस जाना पड़ा. जिस लालू यादव से उन्हें समर्थन की उम्मीद थी, वे भी उन्हें छोड़ कांग्रेस के साथ खड़े हो गए. इसलिए नीतीश शायद ही वैसी गलती फिर करें.

अलग हुए तो जेडीयू में टूट का खतरा
नीतीश कुमार को शायद इस बात का भी आभास होगा कि जिन सांसदों की बदौलत उनकी पूछ बढ़ी है, अगर उन्होंने एनडीए छोड़ा तो उनके टूटने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. नीतीश कुमार पहले इसके भुक्तभोगी रह चुके हैं. नीतीश ने अपने बेहद करीबी और स्वजातीय आरसीपी सिंह को केंद्र में मंत्री बनाया था. भाजपा से जेडीयू के अनबन के कारण ही आरसीपी ने पार्टी छोड़ दी. वे भाजपा के हो गए. उपेंद्र कुशवाहा को भी आरजेडी के साथ जेडीयू का जाना रास नहीं आया. उन्होंने भी जेडीयू को अलविदा कह दिया था. अभी तो जेडीयू कोटे के दो मंत्री केंद्र में हैं. ललन सिंह जिस तरह सरकार के फैसलों के साथ खड़े दिखते हैं, अगर रिश्ते खराब हुए तो उनसे भी हाथ धोने का खतरा नीतीश को जरूर नजर आता होगा. नीतीश कभी नहीं चाहेंगे कि यह स्थिति उत्पन्न हो. इसलिए नीतीश के पाला बदल के आसार की बात कहने वालों के तर्क में कोई दम नजर आता.

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