10 साल 17वीं मुलाकात, चीन को ‘कंट्रोल’ करना मकसद या फिर डील पर नजर?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त मॉस्को में हैं. इसी समय रूस के कट्टर दुश्मन देशों के संगठन नाटो की बैठक हो जा रही है. नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीट ऑर्गेनाइजेशन. यह संगठन रूस-यूक्रेन युद्ध में खुलकर यूक्रेन के साथ है. दूसरी तरफ लंबे समय से भारत और चीन के बीच एलएसी पर तनाव है. दोनों देशों के सेनाएं बीते कुछ सालों के भीतर कई बार आमने-सामने आ चुकी हैं. ऐसे में पीएम मोदी भारत का कौन सा हित साधने मॉस्को पहुंचे हैं? क्या भारत नाटो और पश्चिमी देशों की नाराजगी मोल लेकर रूस से दोस्ती चाहता है? या फिर पीएम मोदी चीन के साथ जारी तनाव के बीच भारत के हित साधने बीजिंग के सबसे करीबी दोस्त के पास पहुंचे हैं?

इन सब सवालों के बीच अगर आप रूस के साथ भारत के मौजूदा रिश्तों को देखेंगे तो आपका माथा चकरा जाएगा. मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में रूस और चीन बेहद करीबी महाशक्तियां हैं. भारत और रूस का रिश्ता ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहा है, लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद इस रिश्ते को डोर कमजोर होती गई. इस दौरान भारत ने अमेरिका, फ्रांस और इजराइल के साथ रिश्ते मजबूत करने की कोशिश की. वह मल्टी पोलर दुनिया के सिद्धांत पर आगे बढ़ा. लेकिन, भारत के साथ एक ऐसी मजबूरी है जिससे वजह से वह रूस के साथ रिश्तों को कमतर नहीं कर सकता.

दौरे का मकसद
2014 में मोदी के पीएम बनने के बाद राष्ट्रपति पुतिन के साथ यह उनकी 17वीं मुलाकात होगी. इससे पहले पीएम मोदी सितंबर 2019 में मॉस्को गए थे. वहीं राष्ट्रपति पुतिन दिसंबर 2021 में नई दिल्ली आए थे. दोनों देशों के बीच रिश्तों में गर्माहट बनाए रखने के लिए हर साल शिखर सम्मेलन आयोजित होता है. लेकिन दिसंबर 2021 के बाद से यह सम्मेलन भी नहीं हो पाया था.

तीसरी बार पीएम बनने के बाद पीएम मोदी अपने पहले द्विपक्षीय दौरे पर रूस पहुंचे हैं. उनका यह दौरा कई मायने में पश्चिम को एक संकेत है जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में भारत को डिक्टेट करने की कोशिश करता है. भारत ने वेस्ट के दबाव को नजरअंदाज कर अपने राष्ट्रीय हित को साधते हुए रूस के साथ व्यापारिक रिश्तों को नई ऊंचाई पर पहुंचाया. ऐसे में पीएम मोदी वेस्ट को यह संदेश देना चाहते हैं कि भारत अपने राष्ट्रीय हित के मसले पर कोई दबाव स्वीकार नहीं करेगा.

इस दौरान रूस के साथ कई समझौते होंगे.

सबसे बड़ा मुद्दा रक्षा उपकरण
भारत और रूस के बीच मजबूत रिश्ते की सबसे मजबूत डोर सैन्य उपकरण हैं. मौजूदा वक्त में भी भारत अपनी 60 से 70 फीसदी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर है. हालांकि, स्थितियां काफी बदल गई हैं. आज भारत, रूस से हथियारों का केवल खरीदार नहीं है. बल्कि आज दोनों देश साथ मिलकर तमाम प्रोजेक्ट साथ कर रहे हैं. भारत ने रूस से S-400 ट्रिम्फ मोबाइल सरफेस टु एयर मिसाइल सिस्टम, मिग-29 फाइटर और कमोव हेलीकॉप्टर की खरीद की है. इसके साथ ही भारत ने रूस से टी-90 टैंकों, सुखोई 30 एमकेआई फाइटर, एके-203 असॉल्ट राइफलों और ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के प्रोडक्शन का लाइसेंस हासिल किया है.

क्या है चीन फैक्टर
बीते 25 सालों में भारत ने रूस से इतर अपनी रक्षा जरूरतों के लिए अन्य देशों यानी अमेरिका, फ्रांस और इजराइल की ओर रुख किया है. लेकिन, वह आज भी रूस को नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है. खासकर चीन के साथ तनान की स्थिति को देखते हुए. ऐसी स्थिति में भारत के लिए जरूरी हो जाता है कि वह रूस से नियमित और भरोसेमंद तरीके से उपकरण हासिल करता रहे. साथ ही रूस के लिए भी यह जरूरी है कि वह भारत के साथ संवेदनशील रक्षा तकनीकों को चीन के साथ साझा न करे. हालांकि, इस बारे में पुतिन कह चुके हैं कि भारत को दी गई तकनीकों को रूस किसी भी दूसरे देश के साथ साझा नहीं करता है.

तेल और पश्चिम को संदेश
यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद रूस पश्चिमी देशों के निशाने पर है. उन्होंने रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगा रहा है. वे भारत पर भी लगातार दबाव बना रहे थे कि वह रूस के खिलाफ अपने रिश्ते को सीमित करे. लेकिन, भारत ने इस दबाव को नजरअंदाज कर रूस के साथ व्यापारिक संबंधों को और धार दी. उसने रूस से सस्ते दाम पर रिकॉर्ड मात्रा में कच्चे तेल की खरीद की. इसको लेकर पश्चिमी देश भारत की आलोचना करते रहे लेकिन भारत ने उनको करारा जवाब दिया. फिर यह मसला शांत हो गया. भारत के तर्कों के आगे पश्चिम को झुकना पड़ा. वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और रूस के बीच 65.70 अरब डॉलर का व्यापार हुआ जो एक रिकॉर्ड है. इसकी व्यापकता का अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि दोनों देशों ने 2025 तक द्विपक्षीय व्यापार को 30 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा, लेकिन समय से काफी पहले यह दोगुना से अधिक हो गया.

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FIRST PUBLISHED : July 8, 2024, 12:36 IST

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