“अखिलेश, अब तो आप खुश होंगे”, SP नेता जिस STF को बताते थे ‘स्पेशल ठाकुर फोर्स’ उसने ही ठाकुर को ठोक दिया

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STF ने ठाकुर जाति के एक बदमाश को एनकाउंटर में मार गिराया. इसके बाद मारे गए अपराधी के पिता ने अखिलेश को सीधे संबोधित किय …अधिक पढ़ें

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उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ इन दिनों एक अलग वजह से चर्चा में है. विपक्षी नेता अखिलेश यादव इसे ऐसा नाम दे रहे हैं कि ये चुन कर जातिविशेष को मारने वाली स्पेशल फोर्स है. सोमवार को सुल्तानपुर में अनुज प्रताप सिंह नाम के एक बदमाश के मारे जाने का हवाला देकर बीजेपी ने अब उनसे सवाल किया है कि आखिर अब अखिलेश यादव क्यों नहीं बोल रहे हैं. इन सबसे अलग एक मसला एसटीएफ और उसके काम काज की शैली को लेकर खड़ा होता है. एसटीएफ एक विशेष पुलिस फोस है. इसका गठन 4 मार्च 1998 को किया गया था. बाकी कामों के अलावा इसके जिम्मे एनकाउंटर करना भी है.

यूपी पुलिस के एडीजी अजय राज शर्मा ने इसका गठन किया था. हालांकि ये सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं है. बल्कि अलग अलग राज्यों की पुलिस ने ऐसी शाखाएं बना रखी हैं. इसका मूल मकसद एक से अधिक जिलों में संगठित तौर से अपराध करने वालों से निपटना होता है. दिल्ली पुलिस के पास इसी तरह की स्पेशल सेल है. स्पेशल सेल का काम कई राज्यों में अपराध करने वालों पर अंकुश लगाना होता है. साथ ही ये आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगता है.

आम तौर पर इस तरह की फोर्स का गठन प्रदेश के पुलिस बल से चुने हुए लोगों को लेकर किया जाता है. इसमें युवा, सक्षम और उत्साही कर्मचारियों और अधिकारियों को तैनाती दी जाती है. ये रोजमर्रे की पुलिस को छोड़ कर अपना लक्ष्य तय करते हैं और उनसे निपटते हैं. इसमें तैनात लोगों को एनकाउंट स्पेशलिस्ट कहा जाता है. हालांकि ये समझ से परे की बात है कि कोई एनकाउंटर और खास तौर से हथियारबंद मुठभेड़ का स्पेशलिस्ट कैसे हो सकता है.

पुलिस के हर जवान और अफसर को गोलियां चलाने और इससे बचने की पूरी ट्रेनिंग दी जाती है. उससे ये अपेक्षा होती है कि अगर गोलियां चले तो वो खुद बचे और गोली चलाने वाले को माकूल जवाब दे. लेकिन जब से एसटीएफ का गठन किया गया तो उसमें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट लिए गए. समय के साथ ऐसे लोग और स्पेशलिस्ट होते गए.

एनकांउटर का मतलब किसी ऐसी घटना से है जो अचानक हो जाय. पुलिस का दल किसी और काम में लगा हो और बदमाश उन पर हमला कर दें. या फिर पुलिस किसी एक या गिरोह में जा रहे कुछ बदमाशों को रोकने की कोशिश करें लेकिन बदमाश उन पर गोलियां चलाने लगें. इसे मुठभेड़ या एनकाउंटर कहा जा सकता है. हालांकि बहुत से मामले ऐसे आए हैं जिनमें पुलिस के ऊपर एनकाउंटर के नाम पर बदमाश को गोली मार देने के आरोप सही साबित हुए. ऐसे मामलों में कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को सजा भी दी है.

अब रह गया अखिलेश यादव का जाति पहचान कर एनकाउंटर करने का मामला तो जो कथित अपराधी अनुज प्रताप सिंह पुलिस की गोली से मारा गया है उसके पिता ने अखिलेख पर आरोप लगाया है कि अब वे संतुष्ट हो गए होंगे कि एसटीएफ जाति देख कर गोलियां नहीं चलाती. यहां विकास दुबे के मामले का भी जिक्र किया जा सकता है. जब उसे मध्य प्रदेश से वापस यूपी ले आया जा रहा था, उसकी गाड़ी पलट गई. फिर उसने भागने की कोशिश की और पुलिस की गोलियों का शिकार हो गया.

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सरकार और पुलिस का एक इकबाल होना चाहिए. लेकिन अगर गोली मार कर ही इकबाल कायम करने की कोशिश की जाएगी तो इसकी प्रतिक्रिया ऐसी ही होगी. कभी अखिलेश यादव एसटीएफ को स्पेशल ठाकुर फोर्स कह दिया था. उस समय गोली का शिकार होने वाला पिछली और दलित जाति का था. अब ठाकुर जाति का एक बदमाश इसका निशाना बना है. पुलिस को बेवजह के एनकाउंटर से बचना होगा और राजनीतिक नेतृत्व को भी चाहिए कि लोगों में ये विश्वास पैदा हो कि जाति धर्म या माली हालत देख कर पुलिस -एसटीएफ कोई किसी को शिकार न बनाए.

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