जानें कब है राधा अष्टमी, ऋषिकेश के पंडित ने बताया भक्ति और प्रेम के इस पर्व का महत्व

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पुजारी शुभम तिवारी ने बताया कि राधा अष्टमी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. यह तिथि जन्माष्टमी …अधिक पढ़ें

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ऋषिकेश: राधा अष्टमी भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय राधा रानी के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा जी का जन्म ब्रजभूमि के बरसाना गांव में हुआ था. राधा रानी को श्रीकृष्ण की अनन्य प्रेमिका और भक्ति, प्रेम और समर्पण की प्रतीक माना जाता है. राधा अष्टमी के दिन भक्त उपवास रखते हैं, राधा-कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं और भजन-कीर्तन के माध्यम से राधा जी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. इस दिन मंदिरों में विशेष आयोजन होते हैं, राधा-कृष्ण की झांकियां सजाई जाती हैं, और भक्ति संगीत गाया जाता है.


लोकल 18 के साथ बातचीत के दौरान उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित श्री सच्चा अखिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी शुभम तिवारी ने बताया कि राधा अष्टमी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. यह तिथि जन्माष्टमी के लगभग 15 दिन बाद आती है, जो राधा रानी के जन्मदिन के रूप में पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती है. इस साल जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त को था इसीलिए राधा अष्टमी 11सितंबर को मनाई जाएगी. इस दिन व्रत करने, मंदिरों में राधा-कृष्ण की झांकियां सजाने, राधा रानी के जीवन और श्रीकृष्ण के साथ उनके दिव्य प्रेम की कथाएं सुनने और भक्ति गीतों का आयोजन करवाने से राधा रानी के साथ ही श्री कृष्ण भी प्रसन्न होते हैं.

राधा अष्टमी का महत्व
राधा अष्टमी राधा रानी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है, जो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ब्रजभूमि के बरसाना में जन्मीं थीं. राधा रानी भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य प्रेमिका और भक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं. इस दिन को उनके अद्वितीय प्रेम और समर्पण के सम्मान में मनाया जाता है.राधा अष्टमी का महत्व भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा के दिव्य प्रेम और भक्ति से जुड़ा है. राधा को ‘भक्ति देवी’ के रूप में पूजा जाता है, और उनका जन्मोत्सव प्रेम, भक्ति, और समर्पण के आदर्श के रूप में मनाया जाता है. भक्तजन इस दिन व्रत रखते हैं, राधा-कृष्ण की पूजा करते हैं, और भजन-कीर्तन के माध्यम से उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. यह दिन भक्तों को प्रेम, त्याग, और ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति का संदेश देता है.

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