पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी अपने सबसे जुझारू नेता अधीर रंजन चौधरी से मुक्ति की योजना पर काम कर रही है. ऐसा ममता बन …अधिक पढ़ें
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लोकसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद की परिस्थितियों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को साधने में जुटी कांग्रेस ने अब उनके सामने सरेंडर कर दिया है. यह हम नहीं बल्कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में दिख रहा है. दरअलस, राष्ट्रीय स्तर पर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस इंडिया ब्लॉक का हिस्सा है लेकिन राज्य स्तर पर कांग्रेस और टीएमसी एक दूसरे के विरोधी हैं. बीते लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के घटक दल होने के बावजूद पश्चिम बंगाल ही एक ऐसा राज्य था जहां कांग्रेस और टीएमसी के बीच गठबंधन नहीं हो सका था. चुनाव के दौरान दोनों दलों के बीच तीखी बयानबाजी भी हुई थी. उसके बाद की परिस्थितियों में भी ममता बनर्जी और कांग्रेस के रिश्ते बहुत सहज नहीं हैं.
राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस पार्टी को केवल एक पर जीत मिली. उसके सबसे जुझारू नेता और 17वीं लोकसभा में सदन में पार्टी के नेता रहे अधीर रंजन चौधरी भी बहरामपुर से चुनाव हार गए. बेहरामपुर उनका गढ़ माना जाता था, लेकिन ममता बनर्जी ने उनके खिलाफ पूर्व क्रिकेटर युसूफ पठान को मैदान में उतार दिया. परिणाम यह हुआ कि 1999 से यहां से लगातार जीत हासिल करने वाले पांच बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी चुनाव हार गए.
कांग्रेस का खराब प्रदर्शन
इस चुनाव में कांग्रेस को राज्य की 42 में से केवल एक सीट पर जीत मिली है. मालदा पश्चिम से इशा खान चौधरी विजयी हुए हैं. राज्य में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद अधीर रंजन चौधरी ने पार्टी के कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद से ही वह पिक्चर से गायब हैं.
कांग्रेस आलाकमान की योजना
बीते दिनों पश्चिम बंगाल को लेकर प्रदेश नेताओं की केंद्रीय नेतृत्व के साथ बड़ी बैठक हुई. इस बैठक में राज्य के 21 नेता शामिल हुए. इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पश्चिम बंगाल को लेकर तीन चीजें करना चाहता है. सबसे पहला काम राज्य में पार्टी का नया संगठन खड़ा करना है. फिर चुनाव के हिसाब से तैयारी करनी है और तीसरा और सबसे अहम काम तृणमूल कांग्रेस के साथ रिश्तों को लेकर फिर से विचार करना है.
दरअसल, राज्य में अधीर रंजन के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ममता बनर्जी सरकार की कटु आलोचक रही है. अधीर रंजन राज्य में कांग्रेस और भाजपा दोनों के खिलाफ बराबर हमलावर रहे. केंद्रीय नेतृत्व के दबाव के बावजूद अधीर रंजन अपने इस स्टैंड से टस से मस नहीं हुए. लोकसभा चुनाव के दौरान ही अधीर रंजन और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बीच सार्वजनिक बयानबाजी हुई.
मजबूत नेतृत्व
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का नेतृत्व अब पहले से काफी मजबूत है. 18वीं लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी की कांग्रेस के भीतर संगठन पर पकड़ मजबूत हुई है. लेकिन, दूसरी तरफ कांग्रेस की स्थिति आज भी वैसी नहीं कि वह अपने दम पर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मजबूती से खड़ी हो सके.
राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए उसे इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों की सख्त जरूरत है. सहयोगी दलों में सबसे अहम किरदार ममता बनर्जी हैं. वह एक बार फिर बंगाल में शेरनी बनकर उभरी हैं. पश्चिम बंगाल में भाजपा के आक्रामक अभियान चलाने के बावजूद टीएमसी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 29 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि 2019 में उनके पास 22 सांसद थे. राज्य में भाजपा 12 सीटों पर सिमट गई और कांग्रेस को एक सीट मिली.
कांग्रेस पार्टी एक समय में पीएम मोदी और सीएम ममता बनर्जी दोनों के खिलाफ नहीं लड़ सकती है.
मोदी या ममता किससे लड़ेगी कांग्रेस?
ऐसे में राहुल गांधी और कांग्रेस को यह तय करना है कि उसे राज्य में ममता बनर्जी से लड़ना है या फिर केंद्र में मोदी सरकार से. ये दोनों चीजें एक साथ नहीं चल सकतीं. राज्य में ममता के खिलाफ लड़ाई की स्थिति में केंद्र में इंडिया गठबंधन कमजोर होगा और कांग्रेस पार्टी मौजूदा स्थिति में ऐसा करने की स्थिति में नहीं है.
जुझारू नेता को बलि देने की तैयारी
ऐसे में वह राज्य में अपने सबसे जुझारू नेता अधीर रंजन चौधरी की बलि देने को तैयार हो गई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व और प्रदेश के कांग्रेस के नेता अधीर रंजन से छुटकारा पाने की योजना पर काम कर रहे हैं. जिससे कि आने वाले समय में तृणमूल कांग्रेस के साथ कांग्रेस के रिश्तों को सहज बनाया जा सके.
अधीर रंजन की जिद
अधीर रंजन की जिद की वजह से पश्चिम बंगाल में कांग्रस का तृणमूल के साथ गठबंधन नहीं हुआ. इसका सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ. 2019 में उसे राज्य में दो लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी लेकिन इस बार खुद अधीर रंजन अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हुए. अगर गठबंधन हुआ होता और कांग्रेस पार्टी को तृणमूल अगर पांच सीटें भी दे देती तो ऐसा संभव था कि उसकी सीटें दो से बढ़कर तीन-चार हो जाती. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ और इसके लिए कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का एक धड़ा अधीर रंजन को जिम्मेदार मानता है.