Lateral Entry: केन्द्र सरकार में लैटरल इंट्री को लेकर विपक्ष ने फिलहाल हल्ला कर रखा है. राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी न …अधिक पढ़ें
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नई दिल्ली. केन्द्र सरकार में लैटरल इंट्री को लेकर विपक्ष ने बवाल मचा रखा है. आलम ये है कि लोकसभा मे विपक्ष के नेता राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया है कि इससे ओबीसी, एससी और एसटी के आरक्षण पर असर पड़ेगा. ये हंगामा तब शुरू हुआ है जब संघ लोक सभा आयोग यानी यूपीएससी ने एक विज्ञप्ति जारी कर ऐलान किया कि संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के स्तर तक के पदों के लिए लेटरल इंट्री से भर्तियां की जाएंगी. लेकिन रेल, सूचना प्रसारण और आईटी मंत्री अश्विनी वैश्णव ने ट्वीट कर कांग्रेस के इन आरोपों को दोहरी मापदंड अपनाने का आरोप लगाया. वैष्णव ने कहा कि यूपीए सरकार ने ही लैटरल इंट्री का आधार रखा था. वैष्णव ने कहा कि एनडीए सरकार ने एक आयोग की सिफारिश को लागू करने के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया अपनायी है. पूरी नियुक्तियां यूपीएसी के जरिए पारदर्शी और सही तरीके से होगी और इन सुधारों से गवर्नेंस सुधरेगा.
देश भर में लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि लैटरल इंट्री को पहली बार देश के सामने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ले कर आयी थी. इस स्तर पर नौकरियां देने का सशक्त अनुमोदन दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने किया था. वीरप्पा मोईली की अध्यक्षता वाली इस समिति का गठन 2005 में किया गया था. इस समिति को भारतीय प्रशासनिक तंत्र को ज्यादा असरदार, पारदर्शी और सिटीजन फ्रेंडली बनाने की अनुशंसा करनी थी. इस समिति की दसवीं रिपोर्ट जिसका शीर्षक था ‘Refurbishing of Personnel Administration – Scaling New Heights.’ इस रिपोर्ट में कमीशन ने सिफारिश की थी कि सिविल सेवा के भीतर सुधार के लिए पर्सनल मैनेजमेंट में भी सुधार की प्रक्रिया शुरू की जाए. इस समिति की सबसे महत्वपूर्ण अनुशंसा ये थी कि सरकार में उच्च पदों पर लैटरल इंट्री के जरिए विशेषज्ञों और एक्सपर्ट्स की भर्तियां की जाएं.
वीरप्पा मोईली समिति की रिपोर्ट के मुताबिक
विशेषज्ञों की जरूरत: प्रशासनिक सुधार समिति ने अपनी रिपोर्ट में उन पदों की पहचान की जिन्हें एक्सपर्ट्स या फिर उस पद के लिए खास जानकारी रखने वालों को रखे जाने का अनुमोदन किया था. ये ऐसे पद थे जो परंपरागत सिविल सेवा मे काम कर रहे लोगों के लिए संभव नही थे. आयोग के मुताबिक इन सभी पदों पर निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत और पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग से प्रोफेशनलों को भर्ती किया जाए.
एक टैलेंट पूल की स्थापना: आयोग ने कहा कि प्रोफेशनलों का एक टैलैंट पूल सरकार बनाए, जिनसे सरकार में उच्च पदों पर थोड़े समय के लिए या फिर कॉंट्रैक्ट के आधार पर वित्त, अर्थशास्त्र, तकनीकी, पब्लिक पॉलिसी के एक्सपर्ट्स को मौका दिया जाए.
चयन प्रक्रिया: आयोग ने लैटरल इंट्री के लिए एक पारदर्शी और मेरिट पर आधारित चयन प्रक्रिया का सुझाव दिया. आयोग ने सलाह दी कि उनकी नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी की स्थापना की जाए.
परफार्मेंस मैनेजमेंट: आयोग ने एक परफॉर्मेस मैनेजमेंट सिस्टम बनाने की वकालत की. जिससे लैटरल इंट्री से आए अधिकारियों की काम के लिए जिम्मेदारी तय हो और वो उसके योगदान का लगातार मूल्याकंन करता रहे.
मौजूदा सिविल सेवा से के साथ जोड़ा जाए: आयोग ने लैटरल इंट्री को काम कर रहे मौजूदा सिविल सेवा अधिकारियों से जोड़ने का अनुमोदन किया. ये इंट्रीग्रेशन कुछ ऐसा रहे कि सिविल सेवा के काम करने का तरीका और इन विशेषज्ञों के स्कील सेट मिल कर काम को आगे बढ़ाएं.
प्रशासनिक सुधार आयोग का इतिहास
देश के पहले प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना 1966 में की गयी थी. जिसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई थे, जिनके बाद के हनुमंथैय्या ने कमान संभाली. इस आयोग ने सिविल सेवा में विशेषज्ञों की उपयोगिता और इस्तेमाल के बारे मे जमीन तैयार की थी. ये बात और है कि आज जिसे लैटरल इंट्री कहते हैं, उसकी वकालत पहले आयोग ने नहीं की थी. इसने बस इतना कहा था कि प्रोफेशनलों, ट्रेनिंग, और पर्सनल मैनेजमेंट में सुधार की जरूरत है ताकि नौकरशाही तेजी से बदलते देश के आगे खड़ी चुनौतियों का सामना कर सके. इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो भारत सरकार ने पहले से ही सिविल सेवा से बाहर काम करे विशेषज्ञों को महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर सलाहकार की भूमिका में भर्तियां की हैं. जैसे केन्द्र सरकार में नियमों के मुताबिक मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद 45 से कम आयु के जाने माने अर्थशास्त्री की लैटरल इंट्री के लिए आरक्षित रहता है. इसी तर्ज पर कई ऐसे एक्सपर्ट्स को केन्द्र सरकार में सचिव के तौर पर नियुक्त करती रही है.
पीएम मोदी के कार्यकाल में लैटरल इंट्री
औपचारिक रुप में लैटरल इंट्री की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हुई है. इसका मकसद यही था कि डोमेन एक्सपर्ट्स को प्रशासनिक कार्यों मे इस्तेमाल कर इसकी कार्यकुशलता और क्षमता बढ़ाने में इस्तेमाल किया जाए. मोदी सरकार के कार्यकाल में पहली बार 2018 में सीनियर पदों पर संयुक्त सचिवों और निदेशकों के पद के लिए निजी और पब्लिक सेक्टरों से प्रोफेनलों के आवेदन मंगवाए गए. चुनाव की प्रक्रिया काफी कठिन थी क्योंकि इसमें उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता, उसके अनुभव और इन महत्वपूर्ण पदों के लिए उनकी पात्रता पर पर जोर दिया गया.
ऐसा नहीं था कि ये नियुक्तियां पहली बार की गयीं थीं. पहले भी ऐसे कई उदाहरण रहे हैं. इन नियुक्तियों मे दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसाओं का खास असर रहा. जिनके चलते लैटरल इंट्री के लिए जमीन तैयार हुई. आयोग की मंशा यही रही थी कि बाहर के एक्सपर्ट्स का इस्तेमाल सिविल सेवा के उन क्षेत्रों में किया जाए जहां उस विषय के एक्सपर्ट्स ज्यादा असरदार रहें. ये सिविल सेवा को आधुनिक गवर्नेंस की चुनौतियों से जूझने में कारगर साबित होगी. प्रशासनिक सुधार आयोग के इसी विजन को ध्यान में रखते हुए 2018 में मोदी सरकार ने संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्तियां करनी शुरू की थीं. ऐजेंडा वही था कि परंपरागत सिविल सेवा के फ्रेमवर्क से अलग इन विशेषज्ञों के स्कील सेट का इस्तेमाल देश के विकास में किया जा सके. यानी पूरे प्रशासनिक सुधारों का मकसद ये है कि कैसे भारत के पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन को आधुनिक बनाया जाए ताकि 21वी सदी के गवर्नेंस की बदलती मांगों को पूरा करने में ये सफल रहें.
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दैनिकसाप्ताहिकमासिकवार्षिक
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