R G Kar Rape Muder Case: अरुणा शानबाग कौन? डॉक्टर बिटिया की तरह हॉस्पिटल में दरिंगदी, CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने किया जिक्र

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R G Kar Murder Case: कोलकाता के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक डॉक्टर बिटिया से रेप और हत्या पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट म …अधिक पढ़ें

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कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और हत्या की घटना से पूरा देश स्तब्ध है. मामले की जांच सीबीआई कर कर रही है. पूरे देश में डॉक्टर हड़ताल पर हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंच गया है. मंगलवार को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. इस दौरान चीफ जस्टिस ने एक ऐसे ही केस का जिक्र किया. उस केस में भी एक नर्स बिटिया के साथ अस्पताल के भीतर ही दरिंदगी हुई गई थी. इसके बाद वह बिटिया एक जिंदा लाश बन गई.

दरअसल, चीफ जस्टिस ने मुंबई के अरुणा शानबाग केस का जिक्र किया. अरुणा मुंबई के नामी सरकारी हॉस्पिटल केईएम में नर्स थी. उसके साथ 1973 में एक वार्ड अटेंडेंट ने रेप किया फिर कुत्ते को बांधने वाली चेन से उसका गला घोंटने की कोशिश की. इस घटना में अरुणा के सिर में गंभीर चोट लगी और वह फिर हमेशा के लिए अपंग हो गई. वह करीब 42 सालों तक अस्पताल के वार्ड में एक बिस्तर पर लाश बनकर पड़ी रही.

होने वाली थी शादी
अरुणा ने 1967 में केईएम अस्पताल को ज्वाइन किया था. उसकी अस्पताल के ही डॉक्टर सुदीप सरदेसाई के साथ सगाई हो चुकी थी. इन दोनों की 1974 में शादी होने वाली थी. लेकिन. 27 नवंबर 1973 की रात वार्ड के एक अटेंडेंट सोहनलाल भार्ता पर शैतान सवार हो गया और उसने अरुणा पर हमला कर दिया. उसने अरुणा के साथ रेप किया और फिर कुत्ते की चेन से गला घोंटने की कोशिश की. इस घटना में अरुणा के दिमाग पर गहरी चोट आई और वह हमेशा को लिए अपंग हो गई. 2015 में अरुणा का निधन हो गया.

ब्रेन सेल डैमेज हो जाने के कारण अरुणा जिंदा लाश थी. वह कुछ बोल नहीं सकती थी. वह अपनी हर एक जरूरत के लिए दूसरों पर निर्भर थी. वह चार दशक से अधिक समय तक फोर्स फीडिंग पर जीवित रही. वह 42 सालों तक अस्पताल में ही रही. केईएम अस्पताल के स्टाफ ने उसका अपनों से ज्यादा ख्याल रखा.

इच्छा मृत्यु की मांग
दरअसल, अरुणा की यह कहानी तब नेशनल मीडिया में छाई थी जब 2011 में एक पत्रकार पिंकी विरानी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर अरुणा के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति मांगी थी. पिंकी ने अरुणा की इस दर्दनाक कहानी को एक किताब का शक्ल दिया है.

पिंकी विरानी ने अपनी याचिका में शीर्ष अदालत से गुहार लगाया था कि अरुणा किसी भी रूप में अपना जीवन नहीं जी पा रही है. ऐसे में उसे सम्मानपूर्वक मरने की अनुमति मिलनी चाहिए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में पिंकी विरानी की याचिका खारिज कर दी और अरुणा को इच्छा मुत्यु की अनुमति नहीं दी थी. सुप्रीम कोर्ट का तर्क था कि अरुणा ब्रेन डेड नहीं है और वह कुछ कभी-कभी रेस्पॉन्स करती है.

18 मई 2015 को निमोनिया की वजह से अरुणा की मौत हो गई. इस घटना के आरोपी सोहनलाल पर केवल चोरी और हत्या की कोशिश का केस चला. क्योंकि उस वक्त कानून की नजर में सोडोमी यानी कुकर्म को रेप नहीं माना जाता था. इस कारण सोहनलाल को सात साल की सजा हुई और वह जेल से बाहर आ गया.

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