खाकी वर्दी के दायित्व के साथ शिक्षक का धर्म भी निभा रहे हैं जेल प्रभारी मुकेश शर्मा

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गुरु और और शिष्य के संबंधों की तरह जेलर और कैदी का रिश्ता होता है। जेल सुधार एवं बंदी कल्याण की दिशा में जेलर एक शिक्षक तो कैदी शिष्य की भूमिका में होता है। शिक्षक दिवस पर के अवसर पर ऐसे ही शिक्षक की कहानी जो असल में शिक्षक का धर्म निभा रहे हैं, वर्तमान में सांगोद जेल इंचार्ज के पद पर कार्यरत जेल प्रभारी मुकेश शर्मा पहले जेल प्रशिक्षण संस्थान अजमेर में जवानों को शारीरिक शिक्षा शारीरिक शिक्षा एवं अनुशासन का ज्ञान देकर तो अब जेल में निरुद्ध निरक्षर बंदियों को साक्षर बनाने के लिए जेल स्टाफ की मदद से जेल में कैदियों की स्कूल की तरह क्लास लगवाते हैं जिसमें जघन्य अपराधों में लिप्त कैदियों को सामाजिक ज्ञान के साथ-साथ अ से अनार ए से एप्पल का ज्ञान भी दिया जाता है। ताकि कैदी साक्षर होकर अपराध की दुनिया से निकलकर समाज में अपने जीवन की नई एबीसीडी लिख सकें । 

भामाशाहों से पाठ्य सामग्री जुटाकर सांगोद जेल प्रशासन के इस प्रयास से 1 वर्ष में लगभग 50 कैदी साक्षर हो चुके हैं इसके साथ ही जेल में योग प्राणायाम, महापुरुषों की गाथाएं गाई एवम सुनाई जाती हैं। जिससे जेल की परिभाषा जेल से सुधार गृह में बदल रही है। कैदियों को शिक्षित करने के लिए कोटा संभाग की जेल डीआईजी रेंज उदयपुर के रेंजाधिकारी कैलाश त्रिवेदी एवं कोटा जेल अधीक्षक परमजीत सिंह सिद्धू सांगोद जेलप्रभारी शर्मा का मार्गदर्शन करते है। जेल प्रभारी शर्मा बंदी सुधार एवं नवाचारों हेतु जेल मंडल कोटा एवं डीआईजी रेंज उदयपुर से सम्मानित भी हो चुके हैं। 

हम शिक्षक भी रक्षक भी दोहरा कर्तव्य हमारा से मिलती है बंदियों को पढ़ाने की प्रेरणा–

अशिक्षा व अज्ञानता के कारण अपराध में संलिप्त होकर जो व्यक्ति जेल में आ जाता है उसे शिक्षा का महत्व बताकर, सामाजिक ज्ञान एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों का अहसास करवाकर समाज में पुनरस्थापित किया जा सकता है इस बात को ध्यान में रखकर जेल में कैदियों की पढ़ाई के लिए क्लास लगवाई जाती हैं जिसमे जेल पर पदस्थापित स्टाफ का भरपूर सहयोग मिलता है।

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