आपके शरीर में क्यों बढ़ रहा कोलेस्‍ट्रॉल? जानकर हो जाएंगे हैरान, गंगाराम के हार्ट स्‍पेशलिस्‍ट ने बताया कैसे करें कंट्रोल

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भारत में हार्ट अटैक, डायबिटीज, हाई ब्‍लड प्रेशर के अलावा एक और बीमारी है जो लोगों में सबसे ज्‍यादा देखने को मिल रही है, वह है हाई कोलेस्‍ट्रॉल. जांच कराने पर ज्‍यादातर लोगों में कोलेस्‍ट्रॉल की मात्रा बढ़ी हुई पाई जा रही है, जो कि हार्ट अटैक और चलते-फिरते किसी भी उम्र में हो रहे कार्डियक अरेस्‍ट का सबसे बड़ा कारण है. लेकिन क्‍या आपको पता है कि यह कोलेस्‍ट्रॉल लेवल आखिर शरीर में बढ़ क्‍यों रहा है? कौन सी चीजें शरीर में इस मोम जैसे दिखने वाले खराब पदार्थ को बढ़ने में मदद कर रही हैं? इसे कैसे कंट्रोल करें ताकि हार्ट अटैक से बचा जा सके? आइए इन सभी सवालों का जवाब दिल्‍ली के सर गंगाराम अस्‍पताल में हार्ट स्‍पेशलिस्‍ट डॉ. अश्विनी मेहता से जानते हैं..

हाल ही में कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर से कोलेस्‍ट्रॉल को लेकर लेटेस्‍ट गाइडलाइंस जारी की गई हैं, जो बताती हैं कि अगर शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल लेवल को सही रखा जाए तो भारत में कम से कम 50 फीसदी हार्ट अटैक्‍स को रोका जा सकता है.

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दिल्‍ली के सर गंगाराम अस्‍पताल में सीनियर कंसल्‍टेंट, कार्डियोलॉजी डॉ. अश्विनी मेहता कहते हैं कि हमारे शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल दो तरह से बनता है, पहला गुड कोलेस्‍ट्रॉल और दूसरा बैड कोलेस्‍ट्रॉल. लेकिन सबसे बड़ी समस्‍या ये है कि जिस चीज को खाने से गुड कोलेस्‍ट्रॉल शरीर को मिलता है, उसी से बैड कोलेस्‍ट्रॉल भी बढ़ता है. ऐसे में खान-पान को बैलेंस करना जरूरी हो जाता है, ताकि खराब कोलेस्‍ट्रॉल की मात्रा शरीर में कम बने और अच्‍छा कोलेस्‍ट्रॉल सेहत को लाभ पहुंचाए.

आखिर क्‍यों बढ़ रहा बेड कोलेस्‍ट्रॉल
डॉ. अश्विनी कहते हैं कि आजकल लोगों के शरीर में गुड कोलेस्‍ट्रॉल के साथ-साथ बेड कोलेस्‍ट्रॉल तेजी से बढ़ रहा है, जिसकी वजह से हार्ट अटैक जैसे मामले सामने आ रहे हैं. दरअसल कोलेस्‍ट्रॉल हमें जीवों यानि जानवरों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों में कोलेस्‍ट्रॉल ज्‍यादा होता है. जैसे दूध या दूध से बने पदार्थ, मीट-मांस आदि.

हालांकि इससे भी ज्‍यादा बड़ा कारण कोलेस्‍ट्रॉल लेवल बढ़ने का है वह है कि हमारा खाना रिफाइन होता जा रहा है. हमारे पास 200 साल पहले चीनी नहीं थी, लेकिन अब रिफाइन होकर चीनी आ रही है और हमारे घरों में इस्‍तेमाल हो रही है. कोई भी चीज जितनी रिफाइन होती है, उसमें कैलोरी घनी हो जाती है. अगर हम अपने शरीर को देखें तो एक लाख पहले जो जींस थे, आज भी वही जींस हैं हमारे लेकिन लाइफस्‍टाइल में इतना जबर्दस्‍त बदलाव हो रहा है कि उसका असर हमारे स्‍वास्‍थ्‍य पर देखने को मिल रहा है.

हम आटा भी बहुत रिफाइन खा रहे हैं. इसमें मैदा और उससे बने प्रोडक्‍ट आज हमारे डेली रूटीन में बढ़ गए हैं, फिर चाहे वे ब्रेड, पिज्‍जा, पास्‍ता, बिस्‍कुट, जंक और फास्‍ट फूड, नूडल्‍स या अन्‍य किसी रूप में हों. सामान्‍य तेल और घी का कंजप्‍शन लगातार घट गया है और हम रोजाना रिफाइंड तेल खा रहे हैं, जिनमें कैमिकल का इस्‍तेमाल बढ़ गया है. इनमें बहुत ज्‍यादा कैलोरी घुली हुई है जो शरीर में बहुतायत में पहुंच रही है. ज‍बकि हमारा शरीर उसे पचा पाने में असमर्थ हो रही है. इसलिए कोलेस्‍ट्रॉल लेवल, ट्रायग्लिसराइड्स, इन्‍फ्लेमेशन और बहुत सारी चीजें शरीर में बढ़ रहीं हैं जो हार्ट अटैक्‍स, डायबिटीज आदि बीमारियों को ट्रिगर करती हैं.

फिर विकल्‍प क्‍या है? क्‍या करें लोग?

डॉ. मेहता कहते हैं कि इसको सुधारने का विकल्‍प हमारे पास है, जो हमें करना चाहिए. हमें चाहिए कि हम अपने जीवन को फिर से व्‍यवस्थित करें, सादा खाना खाएं. पैकेज्‍ड फूड्स को अवॉइड करें. मैदा, तेल से बनी चीजों को कम से कम खाएं. महीने में एक बार से ज्‍यादा जंक फूड न खाएं. जितना हो सके प्राकृतिक चीजों की तरफ जाएं. रसोई में रिफाइन आइटम्‍स की मात्रा घटाएं. इसके साथ ही फिजिकल एक्टिविटी पर भी फोकस करें. रोजाना व्‍यायाम करें. हो सके तो 2 से 5 किलोमीटर तक रोजाना पैदल चलें.

फॉलो करें ये चीजें..
डॉ. मेहता कहते हैं कि ये चीजें आयुर्वेद भी बता रहा है और ऐलोपैथी भी कह रहा है, तो इन चीजों को मानना चाहिए. आयुर्वेद कहता है कि आप अपनी लाइफस्‍टाइल पर फोकस करें, आप दिनचर्या पर फोकस करें, कितने बजे उठते हैं इसका समय निर्धारित करें और सूर्योदय से पहले उठें. इतना ही नहीं आयुर्वेद में एक टर्म है ऋतुचर्या, जो बताता है कि किस ऋतु में क्‍या खाना है, यह पूरी तरह वैज्ञानिक है. यह हमारी पारंपरिक जीवनशैली के साथ मैच भी करती है, इसलिए इसे फॉलो करें.

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