लखनऊ :- यूपी में क्षत्रिय वोट बैंक की नाराजगी का मामला सामने आ रहा है। दावा किया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी से क्षत्रिय वोट बैंक नाराज चल रहा है। इंडिया गठबंधन का भी समर्थन किए जाने का दावा किया जा रहा है। हालांकि, नाराजगी की इन चर्चाओं पर राजनीतिक रोटियों को सेंकने का दौर जारी है।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के बीच क्षत्रियों के नाराजगी का मुद्दा खास गरमाया हुआ है। क्षत्रिय वोट बैंक के बीच भारतीय जनता पार्टी के वादाखिलाफी की चर्चा चल रही है। हालांकि, क्षत्रियों की नाराजगी के मुद्दे को लेकर अलग-अलग बातें हो रही हैं। क्षत्रियों का एक वर्ग अयोध्या में प्रभु रामलला के मंदिर निर्माण को लेकर अलग प्रकार की सोच रख रहा है। वहीं, गुजरात से चली विरोध की हवा उत्तर प्रदेश के राजनीतिक मैदान को प्रभावित करती दिख रही है। गुजरात में पुरुषोत्तम रुपाला के क्षत्रियों को लेकर दिए गए एक बयान के बाद से मुद्दा गरमाया हुआ है। पुरुषोत्तम रुपाला में क्षत्रिय शासकों के अंग्रेजों के साथ संबंध होने की बात कही थी। इसी मुद्दे को लेकर राजपूत वोट बैंक के बीच नाराजगी का मुद्दा गरमा गया। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक मैदान में विपक्ष ने इस मुद्दे को बुलाने की खूब कोशिश की।
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर बसपा प्रमुख मायावती तक ने क्षत्रियों से नाराजगी के मुद्दे को चुनावी मैदान में उछाला। पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की गई। हालांकि, इसका जमीनी स्तर पर कितना असर है? यह चुनाव परिणाम से ही सामने आ पाएगा। कई स्थानों पर उम्मीदवारों को क्षत्रियों की नाराजगी का असर झेलना पड़ा है। फतेहपुर सीकरी से लेकर फतेहपुर लोकसभा सीट तक क्षत्रियों की नाराजगी का सामना करना पड़ा है। अब इस मुद्दे पर राजनीतिक गरमाई हुई है।
क्या क्षत्रपों की अपनी अलग राजनीति?
यूपी में क्षत्रिय नाराज थे या क्षत्रपों में नाराजगी किसकी थी, यह अलग चर्चा है। अपनी अलग राजनीति के जरिए उन्होंने नाराजगी दिखाने का प्रयास किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से सबसे पहले क्षत्रियों की नाराजगी का मुद्दा गरमाया। मुजफ्फरनगर में क्षत्रियों के नाराजगी का मुद्दा खूब गरमाया गया। मुजफ्फरनगर से केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान चुनावी मैदान में थे। भारतीय जनता पार्टी के ही संगीत सोम ने उनके खिलाफ राजनीति शुरू कर दी। वह क्षत्रिय पावर दिखाने का प्रयास किया गया। गाजियाबाद में जनरल वीके सिंह का टिकट काटकर अतुल गर्ग को उम्मीदवार बनाए जाने का मामला गरमा गया है। क्षत्रियों का एक गुट नाराज दिखा। जमीनी स्तर पर इसका असर अधिक नहीं दिख पाया। प्रतापगढ़ में राजा भैया राज्यसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के साथ दिखे थे। लेकिन, लोकसभा चुनाव आते-आते वह राष्ट्रीय लोक दल और अपना दल एस की तरह दो सीटों पर दावे करते दिखने लगे। कौशांबी और प्रतापगढ़ सीट पर वह अपने उम्मीदवार चाहते थे।
भाजपा ने राजा भैया को इस प्रकार की तरजीह नहीं दी। अब वह अपनी अलग राजनीति करते दिख रहे हैं। कुछ यही हाल रहा रायबरेली में अदिति सिंह का दिख रहा है। रायबरेली सदर सीट पर पहली बार कमल खिलाने वाली अदिति सिंह परिवार के परंपरागत प्रतिद्वंद्वी दिनेश प्रताप सिंह को टिकट दिए जाने से नाराज हो गईं। हालांकि, उन्होंने खुलकर भाजपा के निर्णय का विरोध नहीं किया। चुनावी मैदान में उतर कर प्रचार करने नहीं गए। राजपूतों की नाराजगी के बीच राजनाथ सिंह से लेकर धनंजय सिंह तक को पार्टी ने एक अलग रूप में इस्तेमाल किया। क्षत्रियों से अधिक क्षत्रपों की नाराजगी से निपटने पर पार्टी फोकस करती दिख रही है।
यूपी में सात फीसदी आबादी
उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय वोट बैंक की बात करें तो यहां पर कुल आबादी का सात फीसदी इस वर्ग से आता है। ऐसे में यह वर्ग जीत-हार के बीच अंतर पैदा करने वाले वोट बैंक के रूप में माना जाता है। इसके अलावा क्षत्रिय वोट बैंक से जुड़े अन्य वोटर भी महत्वपूर्ण अंतर पैदा कर देते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार से 2014 के बाद से ओबीसी वोट बैंक को आधार बनाकर चुनावी मैदान में उतरना शुरू किया है। उसके बाद क्षत्रिय वोट बैंक के बीच एक अलग असर देखने को मिला। उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्षत्रिय और ब्राह्मण वोट बैंक लगातार अपनी अलग स्थिति दिखाता रहा है।
राजनीतिक ताकत के तौर पर ब्राह्मण और राजपूत दोनों वर्ग चुनावी मैदान में अपनी ताकत का प्रदर्शन करते रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में क्षत्रियों के नाराजगी का मुद्दा उठाकर वोट को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। वहीं, यूपी चुनाव 2022 के दौरान ब्राह्मणों की नाराजगी का मुद्दा खूब जोर-जोर से उठाया गया था। ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की कोशिश अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक करते दिखे हैं। हालांकि, ब्राह्मण वोट बैंक एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के साथ जाता दिखा।
जमीनी स्तर पर कुछ ऐसी स्थिति का राजपूत नाराजगी को लेकर भी दावा किया जा रहा है। भाजपा का दावा है कि यह वोट बैंक उनका अपना है और इसकी नाराजगी को लोकल लेवल पर दूर किया जा रहा है। पश्चिमी यूपी में राजपूत वोट बैंक की नाराजगी के बीच सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तक अपना असर दिखने की कोशिश करते दिखे थे। गाजियाबाद लोकसभा सीट से रिटायर्ड जनरल वीके सिंह का टिकट कटने के बाद क्षत्रिय वोट बैंक में नाराजगी का मुद्दा गरमाया था। हालांकि, अब वह मुद्दा बड़े स्तर पर नहीं दिख रहा है।
वोट बैंक पर कब्जे की कोशिश
राजपूत वोट बैंक को दिशा देने की कोशिश करने वाले नेताओं में भारतीय जनता पार्टी को लेकर नाराजगी का मुद्दा खूब गरमाया जा रहा है। राजपूत वोट बैंक की नाराजगी के बीच भाजपा की ओर से इस वर्ग के बड़े नेताओं को साधने की कोशिश की गई। पिछले दिनों प्रतापगढ़ के कुंडा से विधायक जनसत्ता पार्टी लोकतांत्रिक अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को साधने की कोशिश की गई। उनसे भाजपा के शीर्ष नेता केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने बेंगलुरु में मुलाकात की। हालांकि, इस मुलाकात के बाद भी राजा भैया भाजपा के पक्ष में जाता नहीं दिखा। उन्होंने अपने समर्थकों और वोटरों से कहा कि उन्हें जिस तरफ जाना हो, जाएं।
समाजवादी पार्टी ने इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश की गई है। लगातार राजा भैया को साधने में जुटे हुए हैं। वहीं, राजपूत वर्ग के एक अन्य बड़े नेता धनंजय सिंह को जोड़ने की कोशिश भाजपा ने की है। धनंजय सिंह और उनकी पत्नी श्रीकला रेड्डी ने पिछले दिनों अमित शाह से मुलाकात की। दोनों की मुलाकात के बाद एक बड़े वर्ग को साथ खड़ा होने का संदेश दिया गया है। श्रीकला की लगातार भाजपा से निकटता बढ़ती जा रही है। ऐसे में राजपूत को साधने की कोशिश की जा रही है। इस तरह राजपूत का झुकाव भाजपा की ओर ही नजर आता है। –