MUDA Land Scam: सीएम सिद्धारमैया ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुदा) जमीन आवंटन मामले में अपने खिलाफ जांच के लिए राज्य …अधिक पढ़ें
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुदा जमीन घोटाले में मुसीबत बढ़ती दिख रही है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस मामले में सीएम सिद्धारमैया की याचिका को खारिज कर दिया है. इसमें उन्होंने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) साइट आवंटन मामले में अपने खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत की मंजूरी की वैधता को चुनौती दी थी. हालांकि कर्नाटक हाईकोर्ट में जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने साफ कहा कि इस मामले की जांच जरूरी है और राज्यपाल स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं.
इससे पहले हाईकोर्ट ने 12 सितंबर को सारी सुनवाई पूरी होने के बाद मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने 19 अगस्त के अपने अंतरिम आदेश को भी आगे बढ़ा दिया था, जिसमें जनप्रतिनिधियों के लिए विशेष अदालत को निर्देश दिया गया था कि वह मामले में उनके खिलाफ शिकायतों की सुनवाई करे और याचिका के निपटारे तक अपनी कार्यवाही स्थगित रखे.
दरअसल कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 17 अगस्त को सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सहमति दी थी. इसके बाद सीएम सिद्धारमैया ने राज्यपाल के आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका को हाई कोर्ट में दाखिल किया था. इस मामले में हाई कोर्ट ने 19 अगस्त को सुनवाई की, जहां सीएम सिद्धारमैया की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने राज्यपाल के आदेश को असंवैधानिक बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की थी.
क्या है यह मुदा घोटाला
दरअसल, ये मामला 3.14 एकड़ जमीन के एक टुकड़े से जुड़ा है, जो उनकी पत्नी पार्वती के नाम है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सिद्धारमैया की पत्नी को अधिग्रहित भूमि के मुआवजे के तौर पर मैसूर में 14 प्रीमियम साइटों का आवंटन किया गया, जो पूरी तरह गैरकानूनी था और इसके परिणामस्वरूप राज्य के खजाने को 45 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने इस आरोपों को खारिज करते हुए राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था, ‘संविधान में विश्वास रखने वाले, कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में मैंने कर्नाटक के राज्यपाल के अवैध और राजनीतिक रूप से प्रेरित फैसले के खिलाफ कर्नाटक के हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. मुझे खुशी है कि हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और संबंधित न्यायालय को कार्यवाही टालने का निर्देश देते हुए अंतरिम आदेश पारित किया और यह भी निर्देश दिया कि कोई भी जल्दबाजी में कार्रवाई नहीं की जाए.