देश में रामगीत का दौर चल रहा है. केजरीवाल की पार्टी आप तो लगातार रामलीला के डॉयलागों में ही बातें कर रही है, अब नीतीश क …अधिक पढ़ें
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लग रहा है देश की राजनीति में राम नाम की लूट मची है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी मंच लगा कर राम कथा कह तो नहीं रही है, लेकिन रामलीला के डॉयलाग लगातार दुहरा रही है. बीजेपी तो अलहल ऐलानिया राम की पार्टी रही है. अब नीतीश कुमार भी राम-राम करते दिख रहे हैं. दक्कन से एन चंद्रबाबू नायडू ने प्रसादम का मुद्दा उठा कर हांक लगा ही दी कि वे भी राम के लोगों का खयाल रखते हैं. तो इतना राम राम क्यों हो रहा है. राम पहले भी हिंदुओं की आस्था के केंद्र रहे हैं. पूजा घरों और लोगों के दिलों में विराजते रहे हैं. अब वे लोग भी राम का नाम लेने लगे हैं, जो पहले कभी रामबोला नहीं रहे हैं.
खासतौर से नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की बात की जाय तो ये दोनो अपने तरीके से राजनीति करते रहे हैं. कई बार बीजेपी के साथ रहे, फिर भी राम मुद्दे पर अपना स्टैंड अलग रखते थे. पुरानी बातें याद की जाय तो ये दोनो नेता ‘कॉमन मिनिमन प्रोग्राम’ की छतरी तान कर ही बीजेपी के गोल में शामिल होते रहे. यहां तक कि हाल के दिनों में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का दामन थामा, तब भी संकेत दिए थे कि बिहार में बीजेपी का एजेंडे नहीं चलेगा.
यहां तक कि केंद्र में सरकार बनने के साथ ही नीतीश समर्थकों ने ऐसा माहौल बनाया कि नीतीश कुमार बिहार को स्पेशल स्टेटस से कम पर तैयार नहीं होंगे. चंद्रबाबू की भी अपनी शर्तें दिख रही थीं. गेंद जब बीजेपी सरकार के पाले में आई तो उसने बजट में दोनों के राज्यों को मोटा पैकेज देकर काम निकाल लिया. लेकिन अब से दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कर अयोध्या सीतामढ़ी मार्ग के विकास का अनुरोध किया है. राम की अयोध्या से सीतामढ़ी तक सड़क मार्ग बनाने की केंद्र सरकार की योजना थी. साथ ही नीतीश कुमार ने सीतामढ़ी तक के लिए वंदे भारत रेलगाड़ी भी शुरु करने की अपील की है. वे रामायण सर्किट और सीतामढ़ी के घाटों के विकास की भी बातें कर रहे हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर पीएम के अमेरिका दौरे को लेकर नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की है.
विश्लेषक ये देख रहे हैं नीतीश की चिंता राम की नगरी से सीता के मायके को जोड़ने की उतनी नहीं है, जितनी 2025 के चुनाव को लेकर है. हाल के समय में आरजेडी का युवा नेतृत्व जिस तरह से जमीन पर एग्रेसिव हो रहा है, उससे नीतीश कुमार को लगने लगा है कि अगली बार नैया बीजेपी के सहारे ही पार होगी. इसके अलावा अब वे बिहार में इतिहास पुरुष के तौर पर दर्ज होना चाहते हैं.
‘दैनिक जागरण’ के एसोसिएट एडिटर संजय मिश्रा कहते हैं – “पिछले 20 सालों के शासन में नीतीश कुमार के खिलाफ एक एंटी इंनक्मबेंसी जोर तो बनेगा ही. शराबबंदी का मसला हो या जमीन सर्वे का. नीतीश कुमार से लोगों में नाराजगी है. इससे वे अगले चुनाव में तभी निपट सकते हैं, जब बीजेपी उनके साथ रहे.” साथ ही मिश्रा का ये भी कहना है कि इन सब कामों और अपने लंबे कार्यकाल के जरिए नीतीश को लगता है कि वे इतिहास में दर्ज हो सकते है. ये भी खयाल रखने वाला मसला होगा कि अगले चुनाव तक स्थितियां करवट ले सकती हैं और बीजेपी बिहार में और मजबूत हो सकती है.
रह गई बात चंद्रबाबू नायडू की तो उन्हें जगन मोहन रेड्डी से निपटना है. फौरी तौर पर यही कारण दिख रहा है कि राममंदिर मसले के सामने कॉमन मिनिमन प्रोग्राम रखने वाले नायडू अब प्रसादम का मसला उठा रहे हैं. उन्हें भी अपने राज्य में बहुत सारे काम करने है. इन कामों में राज्य की राजधानी अमरावती का निर्माण भी शामिल है. ये योजना नायडू की महत्वाकांक्षा के हद तक है. ताकतवर रहते हुए उन्हें अपने बेटे को राजनीति में स्थापित भी करना है. ये सब तभी हो सकता है जब केंद्र की बीजेपी सरकार उनके साथ हो.
संजय मिश्रा कहते हैं -“नायडू को भी इतिहास पुरुष बनना है. अमरावती को राजधानी बना कर और अपने बेटे को राजनीति में जमा कर. साथ ही जगनमोहन रेड्डी से निपटना भी है. ये सब वे तभी कर सकते हैं जब केंद्र उन्हें वित्तीय, प्रशासनिक और राजनीतिक समर्थन पूरी तरह से दे.” संजय मिश्रा ये भी याद दिलाते है कि बदले दौर में विमर्श बदला हुआ लगता है. बीजेपी ने राम को सामने रखा है तो आम आदमी पार्टी हनुमान को रख कर चल रही है. इसमें कांग्रेस पीछे न रह जाय, इसलिए कांग्रेस के राहुल गांधी भी शंकर जी को अपने साथ लेकर चल रहे हैं. ऐसे में भी समाजवादी या समाजवादी विचारधारा के निकट नीतीश और नायडू का राम राम करना बहुत हैरान नहीं करता. .