मुगल शासक का फरमान- गंगा स्नान का खर्च उठाएगी रियासत, न लिया जाए कोई टैक्स, जानिए 250 साल पुरानी कहानी!

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मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय का 1773 का फरमान प्रयागराज में तीर्थयात्रियों को धार्मिक स्वतंत्रता और सुविधाएं देने का आदेश देता है. यह फरमान तेलंगाना स्टेट आर्काइव्स में सुरक्षित है. इस फरमान के सामने आने के बाद …और पढ़ें

मुगल शासक का फरमान- गंगा स्नान का खर्च उठाएगी रियासत, न लिया जाए कोई टैक्स!

हाइलाइट्स

  • शाह आलम द्वितीय ने 1773 में तीर्थयात्रियों के लिए फरमान जारी किया.
  • प्रयागराज में गंगा स्नान के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा.
  • फरमान तेलंगाना स्टेट आर्काइव्स में सुरक्षित है.

देश के इतिहास में मुगल शासकों का अपना एक अलग स्थान है. देश में करीब 350 सालों तक मुगलों का शासन रहा. इसकी शुरुआत 1526 से मानी जाती है, जो औपचारिक तौर पर 1857 में खत्म हुआ. इस साढ़े तीन सौ साल के इतिहास के बारे में आज भी अपने समाज में काफी चर्चा होती हैं. इस काल खंड की कई चीजों पर आप भी बहस होती है. एक वर्ग मानता है कि इस काल में हिंदुओं के खिलाफ खूब ज्यादतियां हुईं. मुगल शासकों ने हिंदुओं के साथ भेदभाव किया. वगैरह-वगैरह… लेकिन, मुगल काल का 250 से अधिक पुराना एक दस्तावेज सामने आया है. इससे काफी चीजें के बारे में राय साफ हो जाती है.

इस दस्तावेज के बारे में द हिंदू अखबार ने रिपोर्ट छापी है. यह रिपोर्ट 250 साल से भी अधिक पुराना एक मुगल दस्तावेज इलाहाबाद यानी मौजूदा प्रयागराज में तीर्थयात्रियों को मिलने वाली छूट के बारे में रोचक जानकारी देता है. यह दस्तावेज तेलंगाना स्टेट आर्काइव्स एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीएसएआरआई) में सुरक्षित है. उस समय भारत में बड़े बदलाव हो रहे थे. मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ रहा था और ईस्ट इंडिया कंपनी अपना प्रभाव बढ़ा रही थी. ऐसे दौर में यह दस्तावेज बताता है कि प्रयागराज में संगम में स्नान करने आने वाले तीर्थयात्रियों को धार्मिक स्वतंत्रता और सुविधाएं दी जाती थीं.

मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने जारी किया
यह दस्तावेज एक फरमान है, जो मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने जारी किया था. फरमान का मतलब होता है शाही आदेश. यह 102 सेंटीमीटर लंबा और 46 सेंटीमीटर चौड़ा है. इसमें इलाहाबाद सूबे (प्रांत) के अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि तीर्थयात्रियों से कोई शुल्क न लिया जाए. साथ ही, उनके सभी खर्च सरकार उठाएगी.

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अखबार से टीएसएआरआई की निदेशक जरीना परवीन ने बताया कि यह फरमान 1773 का है और शिकस्ता लिपि में लिखा गया है, जिसे ‘टूटी हुई लिपि’ भी कहते हैं. इसमें ‘मुतकद्दियन’ यानी सार्वजनिक अधिकारी या क्लर्क और नदी के किनारे निगरानी करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश है कि वे पवित्र स्नान के लिए आने वाले तीर्थयात्रियों से कोई शुल्क न वसूलें.”

जरीना परवीन ने इस दस्तावेज का अनुवाद करते हुए समझाया, “सभी कर और शुल्क माफ किए गए थे. गंगा में स्नान को धार्मिक अनुष्ठान माना जाता था, इसलिए इसे बाधित नहीं करना था. कोतवाली, यानी पुलिस को भी यही आदेश दिए गए थे. अगर कोई इस फरमान का उल्लंघन करता, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती.” यह फरमान उन समुदायों के बारे में भी बताता है, जो इलाहाबाद में स्नान के लिए बड़ी संख्या में आते थे. इसमें खास तौर पर ‘गुजरातियों’ और ‘मराठों’ का जिक्र है. उस समय ये समुदाय देश के अलग-अलग हिस्सों से गंगा स्नान के लिए पहुंचते थे.

मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने जारी किया फरमान
फरमान में मुगल सम्राटों की खास मुहर भी है, जो उनकी सत्ता का प्रतीक थी. इतिहासकारों के अनुसार, इस मुहर का डिजाइन अनोखा था. बीच में मौजूदा सम्राट का नाम होता था, और उसके चारों ओर छोटे-छोटे गोले में उनके पूर्वजों के नाम लिखे होते थे, जो तैमूर तक जाते थे. जरीना परवीन बताती हैं कि यह मुहर सुराही के आकार की है. इसमें शाह आलम द्वितीय का नाम बीच में है, और उनके पूर्वजों के नाम चारों ओर हैं. इस मुहर की खासियत थी कि यह मुगल साम्राज्य के बाहर भी मशहूर थी.

जरीना परवीन ने बताया कि मुगल लोग दस्तावेजों को बहुत सावधानी से रखते थे. मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने भी इसकी तारीफ की थी. इस फरमान को हस्तनिर्मित कागज पर लिखा गया था, और इसमें इस्तेमाल स्याही ऐसी थी जो मिटती नहीं थी. उन्होंने एक किस्सा सुनाया कि करीब 25 साल पहले टीएसएआरआई में मुगल रिकॉर्ड वाला हिस्सा बाढ़ में डूब गया था. कर्मचारियों ने बड़ी मेहनत से कागजों को सुखाया. उन्हें डर था कि स्याही धुल जाएगी, लेकिन स्याही न केवल बची रही, बल्कि और गहरी हो गई.

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