रवींद्रनाथ टैगोर भी थे कार के दीवाने! जिस शाही सवारी में घूमते थे कवि, वो यहां आज भी सुरक्षित

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Rabindranath Tagore Car: रवींद्रनाथ टैगोर की पहली कार हंबर थी, जिसे उनके बेटे रथींद्रनाथ ने 1933 में खरीदा था. टैगोर इस कार से बहुत खुश थे और इसे रोजाना इस्तेमाल करते थे. यह कार अभी भी विश्वभारती में सुरक्षित ह…और पढ़ें

हाइलाइट्स

  • रवींद्रनाथ टैगोर की पहली कार हंबर थी.
  • 1933 में टैगोर के बेटे ने हंबर कार खरीदी.
  • टैगोर की हंबर कार अभी भी विश्वभारती में सुरक्षित है.

कोलकाता: आजकल के लोगों की तरह महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर को भी कारों का खास शौक था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रवींद्रनाथ टैगोर ने कौन सी कार खरीदी थी या उन्हें परिवार से उपहार में मिली थी? बता दें कि रवींद्रनाथ टैगोर की पहली कार एक हंबर कार थी. माना जाता है कि यह 1933 का समय था जब हंबर कार टैगोर की सबसे पसंदीदा कार थी. विश्वकवि को इस कार में सफर करना बहुत पसंद था. अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी उन्होंने इस कार का इस्तेमाल किया.

1933 मॉडल की दो हंबर कारें खरीदीं
लगभग 1938 में रवींद्रनाथ टैगोर के छोटे बेटे और विश्वभारती के पहले कुलपति रथींद्रनाथ टैगोर अमेरिका से कृषि विज्ञान की पढ़ाई पूरी करके लौटे. उसी साल रथींद्रनाथ ने 1933 मॉडल की दो हंबर कारें ‘एचएच लिली’ नामक हंबर कार डीलर से खरीदीं. ये डीलर पूरे भारत में एकमात्र थे.

दो कारों की कीमत 400 पाउंड थी
पार्क स्ट्रीट के शोरूम से खरीदी गई इन दो कारों की कीमत 400 पाउंड (तब के समय में 5300 भारतीय रुपये) थी. इन दो कारों में से एक जोड़ासांको में थी और दूसरी विश्वभारती ले जाई गई. उस समय रवींद्रनाथ टैगोर की तबियत ठीक नहीं थी, लेकिन वे रोजाना कुछ दूर पैदल चलते थे और कैंपस में घूमते थे. इसी कारण रथींद्रनाथ ने उनके आराम के लिए यह कार खरीदी. टैगोर इस कार को पाकर बहुत खुश हुए और रोजाना कई बार इसमें सफर करते थे.

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उस समय शांति निकेतन की सड़कों पर इस कार को देखकर लोग समझ जाते थे कि अंदर रवींद्रनाथ टैगोर बैठे हैं और घूमने निकले हैं. उन्होंने अपनी जरूरत के अनुसार इस कार में बदलाव किए थे, जैसे कार के चारों ओर शीतलपाटी लगाई थी ताकि अंदर ठंडक बनी रहे.

क्या थी इस कार की खासियत
इस कार की एक खासियत थी. 1931 में रूट्स ब्रदर्स ने इस कंपनी के अधिकांश शेयर खरीद लिए थे. हंबर ने अपनी पहचान खो दी थी. अधिकांश डिजाइनर और कर्मचारी कंपनी छोड़ गए थे क्योंकि उनके काम की स्वतंत्रता कम हो गई थी, लेकिन 1933 में इस कंपनी ने हंबर कार को फिर से बाजार में उतारा, जिसने न केवल उन्हें वापस लाया बल्कि ब्रिटिश कारों का नाम भी पूरी दुनिया में फैलाया.

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अब आपके मन में यह सवाल उठ सकता है कि इस कार को कहां देखा जा सकता है. रवींद्रनाथ टैगोर की प्रिय हंबर कार अभी भी विश्वभारती में सहेज कर रखी गई है, जहां पर्यटक जाकर इस कार को देख सकते हैं.

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