Monsoon Weather Report: सावन-भादो में बदरा ने खूब भिगोया, सालों बाद हुआ ऐसा, IMD ने बताया ताजा हाल

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IMD Monsoon Weather Report: दक्षिण-पश्चिम मानसून ने इस बार देश के तकरीबन हर हिस्‍से को जमकर भिगोया. अगस्‍त महीने में इस …अधिक पढ़ें

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नई दिल्‍ली. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने दक्षिण-पश्चिम मानसून के सक्रिय होने से पहले ही इस बार अच्‍छी बारिश होने का अनुमान जताया था. उनका यह पूर्वानुमान सच साबित हुआ. देश के कुछ हिस्‍सों को छोड़कर हर क्षेत्र में ठीक-ठाक बारिश रिकॉर्ड की गई है. मौसम विभाग (IMD) मानसूनी बारिश को लेकर नया डाटा जारी किया है. IMD के विज्ञानियों ने बताया कि अगस्‍त महीने में इस बार औसत से ज्‍यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है. बता दें कि इस बार अल नीनो का प्रभाव कम होने से ला-नीना प्रभावी हुआ था. मौसम में इस बदलाव की वजह से दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए अनुकूल हालात पैदा हुए.

IMD भारत में अगस्त में सामान्य से लगभग 16 प्रतिशत अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई. वहीं, उत्तर-पश्चिम भारत में 253.9 mm बारिश दर्ज की गई, जो साल 2001 के बाद से अगस्त में दूसरी सबसे अधिक बारिश का रिकॉर्ड है. भारत मौसम विज्ञान विभाग ने शनिवार को यह जानकारी दी. IMD के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि देश में अगस्त में 287.1 मिमी बारिश दर्ज की गई, जबकि सामान्य तौर पर 248.1 मिमी बारिश होती है. इस तरह IMD का पूर्वानुमान अभी तक सही साबित हुआ है.

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अभी तक 48 mm ज्‍यादा बारिश
IMD ने बताया कि कुल मिलाकर 1 जून को मानसून की शुरुआत के बाद से भारत में अब तक 749 mm बारिश हुई है, जबकि इस अवधि में सामान्य तौर पर 701 मिमी बारिश होती है. आईएमडी प्रमुख ने कहा कि हिमालय के तराई क्षेत्रों और पूर्वोत्तर के कई जिलों में सामान्य से कम वर्षा हुई, क्योंकि अधिकांश लो प्रेशर कंडीशन अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण की ओर चली गईं और मानसून का प्रवाह भी अपने सामान्य स्थिति से दक्षिण में बना रहा. उन्होंने कहा कि केरल और महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों में कम वर्षा हुई है.

झीलों का सर्वेक्षण
सिक्किम में हाई रिस्‍क वाले 6 ग्‍लेसियल लेक के आकार, गहराई आदि का पता लगाने के लिए शनिवार से 15 दिन के लिए स्‍टडी कैंपेन शुरू किया गया है. अधि‍कारियों ने बताया कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के आदेश पर किए जा रहे हिमनद झील संवेदनशीलता आकलन अध्ययन (जीएलएसएएस) से झीलों के बारे में पता लगाने में मदद मिलेगी. स्‍टडी में इलेक्ट्रिकल रेजिस्टीविटी टोमोग्राफी सर्वे (ERT) और ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) का उपयोग करके बांधों का आकलन किया जाएगा, ताकि इसकी स्थिरता और संभावित जोखिम कारकों का मूल्यांकन किया जा सके.

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